नीले गगन के तले
दूबे जी आजकल मीडिया चैनलों पर कुपित हैं.बताने लगे कि अब तो न्यूज़ चैनल आजकल पुरानी खबरों को रेटेलेकास्ट कर देते हैं.मैं भी सुनकर भौचक्का हो गया कि यह दिन आ गए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कि रंगोली और गीत बहार के एपिसोड्स कि तरह खबरें भी दुहराने लगे.उनके अनुसार रेटेलेकास्ट न्यूज़ के कुछ उदहारण यह रहे-,हरभजन विवादों में,दिल्ली मेट्रो रेल पटरी से उतरी,पाकिस्तान ने किया सीज फायर का उलंघन ,अरुशी हत्याकांड में ठोस सुराग अभी तक नही,.मामले को जब मैंने समझा तो मैंने उन्हें बताया कि यह ख़बरों का रेटेलेकास्ट नही है.यह खबरें बिलकुल नयी हैं बस लोग,विवाद और मुद्दे मीडिया में नयी नयी वजहों से बने रहते हैं.एक्साम्पल के तौर पर अगर आप किसी न्यूज़पेपर में यह हेड लाइन देखे कि पाकिस्तान फिर भारत से वार्ता को तैयार तो आप इसे पुँरानी खबर थोड़े ही न कहेंगे?जब से दोनों देश अलग हुए हैं वार्ताओं का दौर जारी है और आगे भी रहेगा.
सच्चाई जानने के बाद खिसिएया दूबे जी का गुस्सा न्यूज़ चैनल से बदल कर समाज पर केन्द्रित हो गया.कहने लगे कि इस वैश्वीकरण और पाश्चात्य संस्कृति ने तो अपनी संस्कृति ही भ्रष्ट कर दी है.उनका गुस्सा जायज़ था.कुछ ही दिनों पहले फ्रेंडशिप डे के मौके पर उनका सपूत किसी नयी बाला से दोस्ती की हसरत लिए लड़कों से बुरी तरह पिट पिटा कर लौटा था.उनकी माने तो यह डेस जैसे फ्रेंशिप डे,रोस डे,वैलेंटाईन्स डे आदि सिर्फ रिश्तों का बाजारीकरण है.आगे बताने लगे कि जिन डेस को गंभीरता से लेने की जरूरत है,वो कब आकर गुज़र जाते हैं,पता ही नही चलता.वो 16 सितम्बर को मनाये जाने वर्ल्ड ओजोन डे के बारे में कह रहे थे.कहने लगे कि आज के युवा को तो मतलब ही न रहा पर्यावरण और उनकी समस्याओं से.बस,नाक कटाने वाले इवेंट्स का ही उन्हें इन्तेज़ार रहता है.
दूबे जी का गुस्स्सा सिर्फ उनके बेटे के करतूत का ही रिजल्ट न थी.कुछ हद तक वो सही भी हैं.गौर करेंगे तो आप पाएंगे कि फ्रेंशिप डे,वैलेंटाईन्स डे,रोस डे जैसे इवेंट्स के पास आते ही बाज़ार और विज्ञापन जगत जितना एक्टिव हो जाता है,उतना इन नेचर और सामाजिक सारोकार से जुड़े इवेंट्स के लिए नही.भागदौड़ और भौतिक सुखों कि चाहत में लिप्त मनुष्य ने कब उस नीली छतरी वाले के छाते में छेद कर डाला,पता ही नही चला.जी हाँ,मैं बात कर रहा हूँ,उस ओजोन लेयर के बारे में,जो हमारी अट्मोसफेअर की छतरी ही तो है.अर्थ के स्ट्रेतोस्फीयर में पाए जाने वाली यह कवच हमें सूर्य के अल्ट्रावोइलेट रेडिएशन से बचाती है.वो रेडिएशन जो मनुष्य के लिए तरह तरह के चर्म रोग,मोतिअबिंद, और कैंसर जैसे बीमारियाँ लाती है.ग्लोबल वार्मिंग,फसलों के उत्पादन में कमी, वनों की हानि तथा समुद्र जल स्तर में वृद्धि भी इसी का तो नतीजा है.
वैज्ञानिक अनुसंधानों एवं अनुमानों के अनुसार, ओजोन छिद्र में यदि एक सेमी की वृद्धि होती है तो उसमें 40 हजार व्यक्ति पराबैंगनी किरणों की चपेट में आ जाते हैं और 5 प्रतिशत से 6 प्रतिशत कैंसर के मामले बढ़ जाते हैं।वैसे इस जीवनदायिनी परत में छेड़ होने के बहुत हद तक हम ही तो जिम्मेदार है.एयर कनदिशनर्स और फ्रिज़ में प्रयुक्त क्लोरो फ्लोरो कार्बन का सही इस्तेमाल न होना ही इस विपदा का सबसे बड़ा कारण है.इसके अलावा हमारे नुक्लेअर टेस्ट से उत्पन गैस और विकिरण,अन्य ODS(ozone decaying susstance)-हैलोन, सीटीसी, मिथाइल क्लोरोफॉर्म,आदि भी इसके लिए जिम्मेदार हैं.
पर अब अपने लिए न सही तो अपने आने वाले पीढी के लिए कुछ कदम तो हम सबको उठाने ही होंगे.मसलन-ओजोन फ्रेंडली गुड्स खरीदना,फ्रीज एयर कनदिशनर्स, का सावधानीपूर्वक प्रयोग,फोम के तकिओं गद्दे की जगह रुई और जूट के बने सामान यूज करना,और ODS से बने किसी भी प्रोडक्ट का पूर्णतः बहिस्कार करना,आदि.आखिर में मह्नेद्र कपूर की आवाज में गाया एक गाना याद आता है जिसके बोल हैं,नीले गागन के तले,धरती पर प्यार पले.पर इंसान अगर जल्दी न सम्हला तो नीले गगन के तले प्यार तो क्या,जीवन का पलना दुश्वार हो जायेगा.यानी अब वो वक़्त आ गया है जब हम धरती के लिए आकाश को बचाएं.है कि नही?
मूल लेख हेतु क्लिक करें. http://inext.co.in/epaper/Default.aspx?edate=9/16/2009&editioncode=2&pageno=18
Ye prakahsan jahreela to nahi hai,daru peene ke baad hansi ki atyadhik matra se ulti ho sakti hai isliye daru peene ko optional kiya jaye.
Ye vastav me bada toing hai.
Mayank
dubey ji ka unda darsan aapke lekh mein jaan lata hai to sbse phle unki upastithi ko mera aabhar aur uske baad aapko neele gagan ki chatri k neeche itna umda sabdo ka mhal bnane k liye badhai...