'हाईवे-यात्रा' का भी एक अलग दर्शन है.सफ़र के दौरान हाईवे पर दिखने वाली हर चीज एक कहानी बयान करती है.मीलों मील का सुनसान रास्ता,जिसमे सड़क के किनारे गाडी लगा कहीं भी खड़े होकर दैनिक क्रियाओं से निपटते लोग़.जिनकी आत्मविश्वास से घूरती निगाहें मानो यही कहती हैं कि इस सुनसान में उन्हें,कौन पहचानने वाला है?वो खाने पीने के अनगिनत ढाबे,जहाँ पकवानों से ज्यादा,खाली डोंगे और तसले दुकान के गेट की शोभा बढ़ाते हैं और कभी कभी ही फंसने वाले ग्राहकों को आकर्षित करते हैं.गाहे बगाहे मिलने वाले,भयंकर ठंडी,महाठंडी बीयर की दुकानें मानो हाईवे जर्नी बिना उनके सेवन के संभव ही न हो.देश में नपुंसकता और मरदाना कमजोरी कितनी बड़ी समस्या है,यह भी हाईवे पर दिखने वाले नीम हकीमो के वॉल-पेनटिंग से पता ही चल जाता है.

दूबे जी के साथ पिछली हाईवे यात्रा बड़ी यादगार रही.वैसे विचारधारा में उनसे मेरा छत्तीस का आकड़ा है,फिर भी यात्रा के बोरिंग लम्हों में चुपचाप बैठे रहने से अच्छा देश की समस्याओं पर दूबे जी का भाषण और नसीहतें सुनना,ज्यादा मनोरंजक है.बातचीत के दौरान एक तेज रफ़्तार ट्रक ने हमें गलत साईड से क्रास किया.अभी हम आगे कुछ मील बढे ही थे कि वो ट्रक हमें सड़क के बीचो बीच धराशाई मिली.दूबे जी सुरक्षित बचे ट्रक ड्राईवर का हालचाल लेने लगे.ड्राईवर पहाड़ो का रहने वाला था और थोडा सांत्वना के बोल सुनते ही अपने दुखों का पिटारा खोल के बैठ गया.पहाड़ी क्षेत्रों में बढती बेरोजगारी और प्रदूषण से दुखी वृद्ध ड्राईवर,अपने बचपन के खूसूरत लम्हों को बयाँ करने लगा.ड्राईवर ने जो बताया,सो बताया पर पहाड़ों का हमारे जीवन में जो महत्व है,उसे कत्तई नज़रंदाज़ नही किया जा सकता.

बचपन में घूमने फिरने या आऊटिंग के लिए पहाड़ों पर जाना मुझे बहुत पसंद था.शादी के बाद संभवतः मेरी तरह का हर युवा हनीमून के लिए भी पहाड़ों पर जाना चाहता है और जीवन के उत्तरार्ध में भी पूजा पाठ और भक्ति के लिए पहाड़ एक अच्छा डेस्टिनेशन है.यानि ज़िन्दगी के हर फेज़ में पहाड़ हमें अपनी ओर बुलाते हैं.यह पहाड़ और वादियाँ सौंदर्य प्रेमी कवियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं.पहाड़ धैर्य,शक्ति,जीवटता,अभिमान,स्थायित्व आदि का भी प्रतीक है.हमारे मुहावरों में भी इन्हें सजाया गया मसलन-खोदा पहाड़ निकली चुहिया,राइ का पहाड़,दुखों का पहाड़,ऊँट पहाड़ के नीचे आदि.हमारी फिल्मों की कलात्मकता को भी चार चाँद लगाया पहाड़ों ने.सोचिये यह पहाड़ न होते,तो वादियों में हीरो हीरोईनों की आवाज कैसे गूंजती.शम्मी कपूर याहू गाने पर बर्फ के बजाए कहाँ उछलते?

हमारे माईथोलोजी में भी पहाड़ों का उल्लेख मिलता है.भोले शंकर का निवास स्थान कैलाश पर्वत पर बताया गया है.समुद्र मंथन में भी मंदराचल पर्वत की भूमिका रही.मुहम्मद साहब को पहला रीवीलेशन 'जबल नूर' पहाड़ के हिरा नाम के गुफा मे मिली.यहूदी और क्रिश्चन मान्यताओं में,ईश्वर के टेन कमांडमेंट्स भी मोज़स को पहाड़ों में ही मिले थे.सवाल यह है कि जीवन के हर पहलू में जब पहाड़ों का इतना इमपारटेंस है तो हम कब इसके महत्व को समझेंगे?वैसे ११ दिसंबर हम 'इंटरनेशनल माउनटेन डे' के तौर पर मना रहे हैं जिसका मुख्य उद्देश्य पहाड़ों का संरक्षण और विकास है पर हम कहीं से भी पहाड़ों को लेकर चिंतित नही दिखते.

बढ़ते प्रदूषण और वनों की कटाई ने पहाड़ों में भूस्खलन को बढ़ा दिया है.बहुत सारे उपयोगी पौधे और हर्ब्स गायब हो रहे हैं.ग्लोबल वार्मिंग ने भी पहाड़ों को पिघलाना शुरू ही कर दिया है.हमारी समस्या यह है कि हम घाव के नासूर बनने के बाद,इलाज ढूंढते हैं.वैसे पर्यावण से जुड़े समस्याओं पर विश्व पहले से ज्यादा चौकन्ना है पर ज़मीनी और बुनियादी स्तर पर भी जागरूकता की जरूरत है.अगर आपने होलीवुड फिल्म २०१२ देखी हो तो फिल्म के अंत में आपने देखा ही होगा कि प्रलय के बाद बनी नयी दुनिया की सबसे ऊंची जगह अफ्रीका के ड्रेकंसबर्ग पर्वत को बताया गया है.सन्देश तो यही है न कि प्रलय के बाद भी इंसान रहे न रहे,यह पर्वत जरूर रहेंगे.सोचना तो हमें अपने बारे में है इसलिए क्यों ना खुद के लिए इन पहाड़ों के बारे में भी थोडा सोचना शुरू कर दें?

११दिसंबर को i-nextमें प्रकाशितhttp://www.inext.co.in/epaper/Default.aspx?edate=12/11/2009&editioncode=1&pageno=16

नीले गगन के तले


दूबे जी आजकल मीडिया चैनलों पर कुपित हैं.बताने लगे कि अब तो न्यूज़ चैनल आजकल पुरानी खबरों को रेटेलेकास्ट कर देते हैं.मैं भी सुनकर भौचक्का हो गया कि यह दिन आ गए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कि रंगोली और गीत बहार के एपिसोड्स कि तरह खबरें भी दुहराने लगे.उनके अनुसार रेटेलेकास्ट न्यूज़ के कुछ उदहारण यह रहे-,हरभजन विवादों में,दिल्ली मेट्रो रेल पटरी से उतरी,पाकिस्तान ने किया सीज फायर का उलंघन ,अरुशी हत्याकांड में ठोस सुराग अभी तक नही,.मामले को जब मैंने समझा तो मैंने उन्हें बताया कि यह ख़बरों का रेटेलेकास्ट नही है.यह खबरें बिलकुल नयी हैं बस लोग,विवाद और मुद्दे मीडिया में नयी नयी वजहों से बने रहते हैं.एक्साम्पल के तौर पर अगर आप किसी न्यूज़पेपर में यह हेड लाइन देखे कि पाकिस्तान फिर भारत से वार्ता को तैयार तो आप इसे पुँरानी खबर थोड़े ही न कहेंगे?जब से दोनों देश अलग हुए हैं वार्ताओं का दौर जारी है और आगे भी रहेगा.

सच्चाई जानने के बाद खिसिएया दूबे जी का गुस्सा न्यूज़ चैनल से बदल कर समाज पर केन्द्रित हो गया.कहने लगे कि इस वैश्वीकरण और पाश्चात्य संस्कृति ने तो अपनी संस्कृति ही भ्रष्ट कर दी है.उनका गुस्सा जायज़ था.कुछ ही दिनों पहले फ्रेंडशिप डे के मौके पर उनका सपूत किसी नयी बाला से दोस्ती की हसरत लिए लड़कों से बुरी तरह पिट पिटा कर लौटा था.उनकी माने तो यह डेस जैसे फ्रेंशिप डे,रोस डे,वैलेंटाईन्स डे आदि सिर्फ रिश्तों का बाजारीकरण है.आगे बताने लगे कि जिन डेस को गंभीरता से लेने की जरूरत है,वो कब आकर गुज़र जाते हैं,पता ही नही चलता.वो 16 सितम्बर को मनाये जाने वर्ल्ड ओजोन डे के बारे में कह रहे थे.कहने लगे कि आज के युवा को तो मतलब ही न रहा पर्यावरण और उनकी समस्याओं से.बस,नाक कटाने वाले इवेंट्स का ही उन्हें इन्तेज़ार रहता है.

दूबे जी का गुस्स्सा सिर्फ उनके बेटे के करतूत का ही रिजल्ट न थी.कुछ हद तक वो सही भी हैं.गौर करेंगे तो आप पाएंगे कि फ्रेंशिप डे,वैलेंटाईन्स डे,रोस डे जैसे इवेंट्स के पास आते ही बाज़ार और विज्ञापन जगत जितना एक्टिव हो जाता है,उतना इन नेचर और सामाजिक सारोकार से जुड़े इवेंट्स के लिए नही.भागदौड़ और भौतिक सुखों कि चाहत में लिप्त मनुष्य ने कब उस नीली छतरी वाले के छाते में छेद कर डाला,पता ही नही चला.जी हाँ,मैं बात कर रहा हूँ,उस ओजोन लेयर के बारे में,जो हमारी अट्मोसफेअर की छतरी ही तो है.अर्थ के स्ट्रेतोस्फीयर में पाए जाने वाली यह कवच हमें सूर्य के अल्ट्रावोइलेट रेडिएशन से बचाती है.वो रेडिएशन जो मनुष्य के लिए तरह तरह के चर्म रोग,मोतिअबिंद, और कैंसर जैसे बीमारियाँ लाती है.ग्लोबल वार्मिंग,फसलों के उत्‍पादन में कमी, वनों की हानि तथा समुद्र जल स्तर में वृद्धि भी इसी का तो नतीजा है.

वैज्ञानिक अनुसंधानों एवं अनुमानों के अनुसार, ओजोन छिद्र में यदि एक सेमी की वृद्धि होती है तो उसमें 40 हजार व्‍यक्‍ति पराबैंगनी किरणों की चपेट में आ जाते हैं और 5 प्रतिशत से 6 प्रतिशत कैंसर के मामले बढ़ जाते हैं।वैसे इस जीवनदायिनी परत में छेड़ होने के बहुत हद तक हम ही तो जिम्मेदार है.एयर कनदिशनर्स और फ्रिज़ में प्रयुक्त क्लोरो फ्लोरो कार्बन का सही इस्तेमाल न होना ही इस विपदा का सबसे बड़ा कारण है.इसके अलावा हमारे नुक्लेअर टेस्ट से उत्पन गैस और विकिरण,अन्य ODS(ozone decaying susstance)-हैलोन, सीटीसी, मिथाइल क्लोरोफॉर्म,आदि भी इसके लिए जिम्मेदार हैं.

पर अब अपने लिए न सही तो अपने आने वाले पीढी के लिए कुछ कदम तो हम सबको उठाने ही होंगे.मसलन-ओजोन फ्रेंडली गुड्स खरीदना,फ्रीज एयर कनदिशनर्स, का सावधानीपूर्वक प्रयोग,फोम के तकिओं गद्दे की जगह रुई और जूट के बने सामान यूज करना,और ODS से बने किसी भी प्रोडक्ट का पूर्णतः बहिस्कार करना,आदि.आखिर में मह्नेद्र कपूर की आवाज में गाया एक गाना याद आता है जिसके बोल हैं,नीले गागन के तले,धरती पर प्यार पले.पर इंसान अगर जल्दी न सम्हला तो नीले गगन के तले प्यार तो क्या,जीवन का पलना दुश्वार हो जायेगा.यानी अब वो वक़्त आ गया है जब हम धरती के लिए आकाश को बचाएं.है कि नही?
मूल लेख हेतु क्लिक करें. http://inext.co.in/epaper/Default.aspx?edate=9/16/2009&editioncode=2&pageno=18

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आपकी जिसमें भी आस्था हो(खम्मन पीर बाबा से लेकर साईं बाबा तक)उनका नाम लेकर,इस लेख के प्रारंभ में मैं यह लिख दूं कि अगर इसे पढने के बाद आपने किसी दूसरे को इसे पढने के लिए फॉरवर्ड न किया तो आपके बुरे दिन शुरू हो जायेगे तो आप क्या करेंगे?मेरा विश्वास है कि मन ही मन आप मुझे आर्शीवाद देते हुए शायद इसे फॉरवर्ड कर दें.कल मैंने भी ऐसा ही किया था .मेरे मोबाइल पर एक सन्देश प्राप्त हुआ जिसे ११ लोगों तक न पहुंचाने के परिणाम स्वरुप मेरे बुरे वक़्त शुरू होने का हवाला दिया गया.जी हाँ,इस प्रकार के लघु मोबाइल सन्देश आजकल बहुत आम हैं.पर क्या करें आस्था भी तो कोई चीज है.वक़्त के साथ साथ हमने बहुत कुछ चीजों को लाइफ स्टाइल का हिस्सा बनाया है जिसमे मोबाइल और उसके यह ऐड ऑन सेवा एस एम् एस सबसे प्रमुख हैं.
मोबाइल का प्रयोग करने वाले शायद किसी ही किसी इंसान ने इस फीचर का लाभ ना उठाया हो.फिर चाहे वो किसी को मोर्निंग या नाईट विश करना हो,या त्यौहार पर शुभकामनाएँ देनी हों,किसी रूठे को मनाना हो या टाइम पास करना हो,sms हर तरह से आपके साथ हैं.अब तो मोबाइल कंपनियाँ भी इसके महत्व को बाखूबी समझ गयीं हैं शायद इसिलए एक से बढ़कर एक एस ऍम एस टैरिफ कार्ड्स मौजूद हैं.हमारे टेली कोम कंपनियों को तो हमारी इतनी फिकर है कि आप कुछ पैसे खर्च करके शायरी,चुटकुले,साहित्य से लेकर प्लेन,ट्रेन आदि कि जानकारी,शेयर मार्केट की उठा पटक,क्रिकेट और देश विदेश की खबरें,भविष्यफल,कुछ भी मंगवा सकते हैं..

पर तिवारी जी एस ऍम एस के बढ़ते प्रभाव से बहुत आहत हैं.कहते हैं कि जब से यह एस ऍम एस संस्कृति प्रचलन में आई है,यह अपने साथ एक नयी भाषा भी साथ ले आई है.you घटकर सिर्फ u रह गया है,love में e अनावश्यक है इसलिए lov ही हिट है,my बदलकर ma हो चुका है.वो आगे बताने लगे कि प्रभाव इतना ज्यादा बढ़ गया है कि बच्चे अप्लिकेशन और नोटबुक दोनों में धड़ल्ले से गलत स्पेलिंग लिख रहे हैं और उसे सही भी बता रहे हैं.कल जब उनके बेटे ने उनका जनरेल नोलेज चेक करने के लिए asl का मतलब पूछ लिया तो वो न बता सके.बाद में पूरा मतलब जानकर वो खिसिआए बिना भी नही रह सके.

सोचिये,इस एस एम् एस के आने के बाद कितना कुछ बदला है.अगर आपके अन्दर से कोई शायरी बाहर आने को उतावली है तो बेझिजक उसे फॉरवर्ड कर लोगों को दे मारिए.नए विचारों का इतना अकाल है कि आपके विचार तुंरत स्वीकार कर लिए जायेंगे.चलिए,इसका एक और उपयोग बताता हूँ.इसमें नए रिश्ते जोड़ने की असीम शक्ति होती है.हमारे युवा बंधू अक्सर किसी से जुड़ने के लिए पहले तो उसका नम्बर प्राप्त करते हैं,फिर शायराना और दिल को छू लेने वाले संदेशों से टार्गेट का जीना हराम कर देते हैं.अपेक्षित व्यक्ति की कॉल आये तो रिश्तों की बुनियाद रखने की लपेटू प्रक्रिया शुरू और अगर भाई,पिता पुलिस आदि की काल हो तो तकनीकी गलती का हवाला देकर बच जाते हैं.
समय बदला तो साथ साथ यह एस एम् एस भी बदल गए.एस एम् एस कब एम् एम् एस हो गया पता ही नही चला.किसी को रिझाने के लिए अब सिर्फ टेक्स्ट मैटर ही काफी नही,ग्राफिक्स और म्यूजिक भी सन्देश का हिस्सा बन्ने लगे हैं.पर यह एम् एम् एस और बिगडा तो 'एम् एम् एस काण्ड' जैसे शब्द भी हमारे परिभाषावली का हिस्सा बन गए. भावना व्यक्त करने के अलावा अब हम देश का बेजोड़ गवैया और डांसर तय करने में भी इसका प्रयोग करने लगें हैं.इसके समर्थकों का तो यहाँ तक मानना है कि देश के आम चुनाव भी इसी के जरिए हो जाएँ तो बेहतर.निष्क्रिय और सुस्त पड़ते समाज की फिलहाल कमोवेश सोच तो यही है.जी हाँ,एस ऍम एस के साथ साथ भाषा ही नही बल्कि रिश्ते और सामाजिक सक्रियता भी सिकुड़कर छोटे होते जा रहे है पर तकनीक के इस दौर में रिश्तों और भावनाओं के बारे में लोग कम ही सोचते हैं पर आप एक बार जरूर सोचियेगा.
(२९ अगस्त को आई नेक्स्ट में प्रकाशित).http://www.inext.co.in/epaper/Default.aspx?edate=8/29/2009&editioncode=1&pageno=16#

मस्ती की पाठशाला...

आजकल सारा समय गाने सुनने में बीतता है.नही नही,मैं छुट्टिया नही मना रहा,जॉब ही कुछ ऐसी है,सोचने बैठा कि इस अंतररास्ट्रीय युवा दिवस को व्यावसायिक तरीके से रेडियो पर कैसे मनाया जाए?कुछ फ़िल्मी गानों का चुनाव करना था जो युवाओं का प्रतिनिधित्व करता हो.किसी ने रंग दे बसंती के 'मस्ती के पाठशाला' गाने का नाम सुझाया.गीत को सुनने बैठा तो लगा कि वाकई यह आज के युवाओं का दर्शन है.गाने में एक लाइन है.'टल्ली होकर गिरने से हमने सीखी ग्रविटी'...यानी आज का युवा ग्रविटी के नियमों को समझने के लिए किताबों और फिजिक्स के क्लास में सर नही खपाता.उसके पास दूसरे ऑप्शन्स भी हैं.भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस तो वैसे १२ जनवरी को स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन पर मनाते हैं पर हम भारतीय विश्व बंधुत्व और ग्लोबल विलेज की भावना से प्रेरित हैं तो १२ अगस्त को अंतरास्ट्रीय युवा दिवस मनाने में हर्जा क्या है?

वस्तुतः युवा दिवस मनाने का उद्देश्य है कि युवाओं की समस्याओं पर विचार किया जाए पर युवाओं की वास्तविक समस्याएँ क्या हैं?इस विषय में मैंने जब अपने युवा मित्रों से पूछा तो उनके जवाब अलग अलग मिले.किसी का कहना था कि रेसेशन के चलते रोजगार की कमी एक बहुत बड़ी समस्या है.कोई नशाखोरी और गैरजिम्मेदारी को बड़ी समस्या मान रहा था.पर दूबे जी की माने तो युवाओं की सबसे बड़ी समस्या गर्लफ्रेंड है.चूंकि उनका नया नया ब्रेकअप हुआ है तो मै समझ सकता था पर वो वहीँ शांत नही हुए.कहने लगे कि जिनके पास गर्ल फ्रेंड है,उनकी समस्या यह है कि वो उनसे ठीक से मिल नही पाते,क्यों?अरे प्यार का दुश्मन तो सारा ज़माना है .और जिनके पास गर्लफ्रेंड नही हैं वो उनको देख देख कर कुढ़ते रहते हैं,जिनके पास यह नेमत है.यानी देश का विकास सिर्फ इसलिए रुका है कि युवाओं का ध्यान अपने काम पर नही बल्कि गर्लफ्रेंड की समस्या पर है.पाश्चात्य देश शायद इसी वजह से तरक्की कर रहे हैं.

पर मैं जरा युवा शब्द के अर्थ को लेकर भ्रमित हूँ.युवा कौन हैं?क्या मैं युवा हूँ जो दिन भर के जॉब के बाद मनोरंजन के अन्य विकल्पों के बारे में भी सोचता है?या युवा वो है जो मल्टीनेशनल के कपडे पहनता है,वीकेंड्स को पब और डिस्को जाता है और कल की चिंता नही करता.राहुल गाँधी ने एक बार कहा था कि मनमोहन सिंह युवा हैं क्योंकि वो आगे,भविष्य की ओर देखते हैं..बॉलीवुड का एक्साम्पल लें तो देव आनंद भी युवा हैं क्योंकि ८५ साल की आयु में वो आज भी फिल्में बना रहे हैं.चलिए इस बहस को सिर्फ इस बात से समाप्त किया जा सकता है कि किसी का तन नही मन जवान होना चाहिए.लेकिन जिनका तन भी जवान है उनका क्या? भारत की अधिकाँश आबादी युवाओं की है पर युवाओं की सामाजिक भागेदारी ऍम बी ए करके ऊंची सलरी उठाने,विदेश में जॉब पाने और राजनीतिज्ञों को गालियाँ देने में है.पिछले दिनों खबर आई कि देश के ३० युवा सांसद सेना में भरती होना चाहते हैं .खबर सकारात्मक थी पर साथ में वो यह भी चाहते हैं कि दो महीनो की होने वाली ट्रेनिंग मात्र एक महीने हो.जाहिर है कि ट्रेनिंग करने के बाद वो सीमाओं पर जाकर लडेंगे तो नही.यानी सेना का रुतबा और ग्लैमोर तो चाहिए पर झंझट नही.

युवा बदल रहा है.बदले भी क्यों न..बदलाव,विकास और आगे बढ़ने के लिए जरूरी हैं.पर यह बदलाव जरा हट के है.आज का युवा ज्यादा मतीरिअलिस्टिक हो गया है.उसे ज्यादा से ज्यादा पैसा और सफलता कम समय में चाहिए क्योंकि उनका मानना है कि अगर जवानी ही नही रही तो इन भौतिक सुखों का लाभ कब उठाएँगे.यानी आज का युवा जवानी काम करके बिताने और बुढापा आराम से गुजारने वाले पुराने कांसेप्ट पर नही चलता.उसे ज्यादा का इरादा है.पर कितने ज्यादा का इरादा इसके सीमाओं का निर्धारण आज के युवा को ही करना है क्योंकि समाज गिव एन टेक की पॉलिसी पर चलता है.यानी समाज हमें जो देता है,उसके बदले हमें भी समाज को कुछ देना पड़ता है.और अगर सिर्फ अपने बारे में सोचने में युवा ने समाज को भुला दिया तो समाज भी एक दिन उसे भुला देगा.
(१२ अगस्त को आई-नेक्स्ट में प्रकाशित)

अफवाह गरम है....

इस बार शुरुआत एक लघु कथा से..आदिदास और कालिदास दो भाई थे.जहाँ कालिदास बचपन में मूर्ख थे(जैसा कि हम सब जानते हैं) वहीँ आदिदास बचपन से ही चतुर प्रवृति का था.कालिदास जहाँ अपने आई. क्यू. लेबल की वजह से अध्यन अध्यापन से दूर रहे,वहीँ आदिदास पढाई लिखाई छोड़कर व्यापार आदि करने का मन बनाने लगा.समय बीतने पर,जहाँ वयस्क होने के बाद,कालिदास का झुकाव अध्यन और साहित्य सृजन की तरफ हो गया,वही आदिदास ने अपने व्यापार को फैलाने के उद्देश्य से 'जूतों' के निर्माण की एक कंपनी "आदिदास" डाली.व्यापार चल निकला और कालांतर में इसका नाम बदलकर 'आडीडास' हो गया.वर्तमान में कितने ही देशी और विदेशी खिलाडी इसके प्रोडक्ट को इनडोर्स करते हैं.

अरे नहीं,कृपया शांत रहे.उपरोक्त सारी कहानी काल्पनिक हैं.साहित्य प्रेमी बंधुओं,आपसे भी विनम्र क्षमा,आपका दिल दुखाने का जरा सा भी इरादा नही था.उपर लिखी कहानी मात्र यह बताने के लिए थी कि अगर अफवाह भी सही तरीके से उडाई जाए तो किस हद तक सही लगने लगती है.मान लीजिये,किसी न्यूज़ चैनल ने इसी विषय पर एक घंटे कि बिना सर पैर की स्टोरी चला दी होती तो शायद कितने ही लोग इस कहानी को सही मान बैठते.जी हाँ,कुछ यही हाल आजकल के खबरिया और मनोरंजन चैनल्स का है.आप घंटे भर की 'सो कॉल्ड' स्पेशल रिपोर्ट पूरी देख डालें,अंत में आप खुद को ठगा हुआ महसूस करते हुए यही पाएंगे की सारी खबर अफवाहों पर आधारित हैं.खबरिया चैनलों की दलील यह है कि वो तो सिर्फ जनता को आगाह करना चाहते हैं पर जनता के साथ क्या होता है इसका एक एक्साम्पल देता हूँ.याद है जब यह अफवाह उडी थी कि लार्ज हैलोजन कोलाईडर मशीन के शुरू होते ही दुनिया खत्म हो जायेगी तो किसी युवा ने इस डर के मारे आत्महत्या कर ली थी.

मेरे सीनियर आलोक जी बताते हैं कि इन चैनल्स को वर्तमान में टी आर पी की लडाई में सिर्फ कसाब और तालिबान का ही सहारा है.सही भी है,पिछले साल भर में भले ही कई आतंकवादी घटनाओं को देश ने झेला है पर इन चैनलों की माने तो देश में जीने के लिए एक दिन भी सुरक्षित नही.पाकिस्तान सीमा पर थोडी गहमा गहमी बढती है तो इन चैनलों की दया से ऐसा लगता है कि मानो कल ही एटॉमिक वार छिड़ने वाला है.चलिए,सिर्फ खबरिया चैनलों को दोष नही देंगे.अफवाह तो ऐसी चीज है जो कहीं भी उडाई जा सकती है.सिर्फ आपकी उस अफवाह में लोगों की दिलचस्पी होनी चाहिए.अफवाह यह उड़ती है कि राखी सावंत शादी नही करेंगी तो परेशान मोहल्ले का पुत्तन हो जाता है.राजू और बिरजू में तो इस बात को लेकर लडाई हो गयी कि अपनी सगाई में सानिया मिर्सा ने असल में कितने मूल्य की अंगूठी पहनी थी.शायद सूचना क्रांति के द्वारा संपूर्ण विश्व को ग्लोबल विलेज बनाने की कल्पना यहाँ पर तो सही होते दिखाई देती है.


ऐसा नही कि अफवाहों से सिर्फ नुक्सान ही है.कभी कभी यह फैयदे के लिए भी उडाये जाते है.बीते समय की अभिनेत्री वैजयंतीमाला ने एक बार कहा था की संगम फिल्म के प्रोमोशन के लिए राजकपूर ने जानबूझकर अपने और उनके रोमांस की अफवाह उडाई थी जिसका उन्हें फैयदा भी मिला.हमारा शेयर बाज़ार भी अफवाहों के चलते कई बार ऊपर नीचे होता रहता है.याद है,जब वीरन्द्र सहवाग ने अपनी चमक नयी नयी बिखेनी शुरू की थी तो अफवाह उडी कि वो प्रतिदिन चार लीटर दूध का सेवन करते हैं जिसका खंडन उन्होंने बाद में खुद किया.अफवाहों का एक अलग पहलु भी है.येही अफवाह जब मोहल्ले की किसी शादी योग्य लड़की के लिए फैलती है तो उसकी शादी होना मुश्किल हो जाती है.कहते थे कि इराक के पास विनाशकारी हतियार हैं पर इराक के बर्बाद होने के बाद भी आज तक उन्हें ढूँढा न जा सका.आखिर में कहना सिर्फ इतना है कि अफवाहों के मज़े लीजिये पर उनको न खुद पर और ना ही समाज में हावी न होने दीजिये क्योंकि अफवाह सभी के लिए फैय्देमंद नही होते और न सबके लिए यह कहा जा सकता है कि 'बदनाम होंगे तो क्या नाम नही होगा.'