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दूबे जी के निशाने पर आजकल, मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर्स हैं. सुना है, उन्होंने घर के सारे मोबाइल कनेक्शन बंद कराके, पुन: सरकारी डेस्क फोन (की पैड पर ताला चाभी युक्त) की सुविधा ले ली है. करें भी क्यों ना..इस महीने उनके मोबाइल का बिल ही कुछ ऐसा आया है. उनके बड़े बेटे ने आईपीएल के दौरान उंगली क्रिकेट में सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. रही सही कसर छोटे सुपुत्र ने पूरी कर दी है. मैंने दूबे जी को समझाया कि बिल के बारे में एक बार कम्पनी में बात करके देखें. तकनीकी गड़बड़ संभव है. उन्होंने मुझे ऐसा घूरा मानो आखों से ही भस्म कर देंगे. कहने लगे कि यह सब वो पहले ही कर चुके हैं. यह तो उनके लाडले के यारी दोस्ती सेवाओं का नतीजा है.

वो बताने लगे कि यह सब सिर्फ एक मैसेज से शुरू हुआ. मैसेज था, हैलो, मैं बिपाशा, मुझसे दोस्ती करोगे? बस इसी मैसेज के बाद उनका सपूत बिपाशा के मोह जाल में फंस गया. ज्यादा गुस्सा तो इस बात का भी है कि उनके सुपुत्र की बिपाशा, बिपाशा बसु की जगह कानपुर की बिपाशा निकल गयी. अब उन्हें कौन समझाए कि चंद मासिक शुल्क और 3 रुपया मिनट की दर पर इससे ज्यादा और क्या मिलेगा? वैसे, आजकल मोबाइल पर मिलने वाली इस प्रकार की ऐड ऑन सेवाओं से आप बाखूबी परिचित होंगे. लेकिन इस तरह की सर्विसेज कई तरह के सवाल भी खड़े करती हैं.

तकनीकी क्रांति ने हमें सब कुछ दिया है. हमें सामाजिक तौर पर और सक्रिय बनाया. आज हम अपने दोस्तों से ज्यादा से ज्यादा बेहतर तरीके से कनेक्ट हैं. ऑरकुट, ट्विट्र, फेसबुक, हाई-फाई, लिंक्डइन, इन्ड्या रॉक्स, और न जाने क्या-क्या. यह सब हमारे बढ़ते सामाजिक दायरा के उदहारण हैं. फ्रेंड लिस्ट में 500 से ज्यादा दोस्त हैं, फिर भी दिल खुद को अकेला महसूस करता है. कहीं एक कमी सी है तभी तो हम बाज़ार में आने वाले इस दोस्त और दोस्ती के नित नए ऑफर्स को एक्सेप्ट कर रहे हैं. व्यावसायिक कंपनियां भी इसी जुगाड़ में लगी रहती हैं कि किस प्रकार इस रिश्ते को नए कलेवर और पैकेजिंग में उतारा जाए. जरूरत के मुताबिक इंटरनेट पर नॉर्मल फ्रेंड फाइंडर साईट्स से लेकर अडल्ट फ्रेंड फाइंडर साईट्स तक अवेलेबल हैं. बस, जेब से क्रेडिट कार्ड निकालिए और मन मुताबिक इस रिश्ते की खरीददारी कीजिये.
दोस्ती के भी आपको आजकल नए-नए रूप देखने मिलेंगे. नेट फ्रेंड्स, कॉलेज फ्रेंड्स, मोहल्ला फ्रेंड्स, चैट फ्रेंड्स, पेन फ्रेंड्स, एसएमएस फ्रेंड्स. तकनीकी क्रांति के पहले शायद दोस्ती के इतने फ्लेवर मौजूद नहीं थे. ज्यादा जरूरत बढ़ी तो फ्रेंडशिप क्लब बन गए. एक पुराने न्यूजपेपर में किसी फ्रेंडशिप क्लब के क्लासीफाइड ऐड की बानगी कुछ यूं थी. अपने शहर में हाई प्रोफाइल हाउस वाइफ और महिलाओं से दोस्ती करें और हजारों कमाएं. सौजन्य से ब्लैक ब्यूटी फ्रेंडशिप क्लब. निम्न मोबाइल पर संपर्क करें. अगर ये सोचें कि दोस्ती करने से हजारों की कमाई कैसे होगी, तो शायद आप सोचते ही रह जायेंगे. कुकुरमुत्ते की तरह उग आये इन फ्रेंडशिप क्लबों के नाम पर छपने वाले विज्ञापनों की असलियत क्या है, वो तो हमें गाहे-बगाहे समाचार पत्रों से पता चलता ही रहता है.

बहुत पहले साहित्यकार रामचंद्र शुक्ल का एक निबंध पढ़ा था, जिसमें मित्रता पर उन्होंने कहा था कि मित्रों के चुनाव की उपयुक्तता पर जीवन की सफलता निर्भर करती है. पर आज के जमाने में हमने इस स्टेटमेंट को अपने तरीके से समझ लिया है. कैसे? हम उन्हें ही मित्र बनाते हैं, जिससे जीवन में सफलता के चांसेज बढ़ जायें. वक्त बदला तो मित्रता के मायने भी बदल गए. आज हमें दोस्त और दोस्ती भी थैला भर के चाहिए. एक दोस्त छूट गया तो क्या गम, बाकी तो हैं. समस्या तो यही है, गम क्यों नहीं है, क्या दोस्ती भी बाज़ार में मिलने वाले विभिन्न सर्विस प्रोवाइडर्स के सिम कार्ड की तरह हो गयी है, जिसमे सर्विस न पसंद आने पर दूसरा कार्ड लेने की सुविधा है. ज़ंजीर में प्राण साहब के लिए यारी ही ईमान थी और यार ही जिंदगी. पर यह मॉरल्स फिल्म के साथ ही पुराने पड़ गये. आजकल इश्क कमीना और कम्बख्त हो गया है. मुहब्बत, बेईमान मुहब्बत हो गयी है. दोस्ती भी दोस्ती न रही, दिल दोस्ती etc हो गयी है. क्या आपको नहीं लगता कि हमें दोस्त और दोस्ती के मतलब को समझने के लिए एक रेवोल्यूशन की जरूरत है, सोचियेगा जरूर.
2 Responses
  1. Unknown Says:

    Hello Abhishek ji...apka article pada..padkar bahut khusi hue ki kisi ne to is riste ki ahmiyat ko samja..vkai dosti duniya ka sabse khoobsurat rista hai.dosti ka fool hi ek esa fool hota hai jiske sath koi kanta nahi hota..par hum khud is relation ko kitne ahmiyat dete hai?kya hum hamare dosto ke sukh dukh me samne khade hote hai..shayad hamare paas kai excuses honge..par sach to ye hai ki bhautikta k is daur me ek sachche dost ki behad jarurat hai jo hame sahara de..hamre sukh dukh ko samaj sake..aur har kadam pe hamare sath khada ho sake..par vivshta to ye hai ki samaj ek ladke ladki ki dosti ko b sahe nazar se nahi dekhta..kyu??dosti fir dosti hoti hai usme seemaye nirdharit nahi ki ja sakti..har relation ki apne jagah hai u can't compare wid a 1..so lets make true frnz..friendship is all about "NO COMPLAINTS NO DEMONDS"..CHEERS FRNZ..


  2. ashi Says:

    hey abhishek..apne bahut achcha likha hai..aap badhai ke hakdaar hain..sach to yahe hai ki dosti ek bahut pyara rista hai..par is baat ko samjhta kaun hai..apne bilkul sahe likha hai ki samay ke sath dosti ke mayne b badal gaye hai..to ek sach ye b hai ki samaj ki soch b badal gaye hai..par kya vakai hame is relation ki jarurat nahi..??sach to ye hai ki aaj ke daur me hame pahle se kahi jada dosto ki jarurat hai...to kosis karte hai ki aane wale samay me dosti sirf dosti he rahe..DIL DOSTI ETC..na ho jaye..