बीते हुए लम्हों की कसक....


दूबे जी को सड़कों के किनारे खोमचे पर कुछ खाते देखना एक दुर्लभ संयोग है.वैसे भी,उनके जैसे चमड़ी और दमड़ी दोनों को ही एक समान महत्व देने वाले व्यक्ति के लिए ऐसा करते दिखना,धूमकेतु दिखने जैसा ही है.पडोसी होने के नाते उनसे मिलते ही,मैंने बेमन से यह आग्रह कर डाला कि अगर मिसेज दूबे घर पर नहीं है तो आज रात का भोजन वो मेरे घर ही कर लें. भोजन के निमंत्रण पर भावुक हो उठे दूबे जी बताने लगे कि आज फिर से 'दुबाईन' ने घर पर भूख हड़ताल छेड़ दी है.कारण यह है कि आज सालों बाद दूबे जी पूरे परिवार के साथ फिल्म देखने निकले और गलती यह कर दी कि सिंगल स्क्रीन थीएटर का रुख कर लिया.बाकी,सीनेमाहॉल के फटे हुए सीट्स,अचानक कटते सीन्स,बीच बीच में गायब संवाद,धुंधली स्क्रीन और बेवजह पॉवर कट ने श्रीमती जी का मूड ख़राब कर दिया.
'दुबाईन' के गुस्से को मैंने जायज करार दिया.मैंने समझाया कि वो थोडा ज्यादा पैसे खर्च कर के वो किसी मल्टीप्लेक्स का रुख भी तो कर सकते थे.पैसों की बात आते ही वो तड़प उठे.वैसे भी,वो देश में तेजी से घटते सिंगल थीयेटर्स की कमी से काफी दुखित थे.कहने लगे कि बरसाती घास की पनपते इन मल्टीप्लेक्सों की वजह से ही यह सिंगल स्क्रीन हाल अब 'इनडेनजर्ड स्पीसीज' की श्रेणी में आ गयें हैं.बात तो उनकी सही थी.तेजी से बंद होते यह सिंगल स्क्रीन थियेटर अब देश में करीब ११००० ही रह गए हैं. जबरदस्त घाटे सहते यह थीयेटर्स या तो अश्लील या भोजपुरी सिनेमा का केंद्र बन गए हैं या बंद होकर शहर में लगने वाले विभिन्न सेल्स के लिए मुफीद जगह बन चुके हैं.
मैंने दूबे जी को समझाया कि इन्ही मल्टीप्लेक्सों की वजह से तो आज हमें एक ही स्थान पर कई फिल्मों का विकल्प मिल जाता है.गुस्साए दूबे जी ने मल्टीप्लेक्सों को सिर्फ फर्जी स्टेटस सिम्बल और पैसे के शो ऑफ का अड्डा करार दे डाला.कहने लगे कि काहे का विकल्प उपलब्ध हुआ है?आज भी भारतीय जनता घर पर ही मूवी डीसाएड करके हॉल का रुख करती है.कुछ एक ही ठलुए ऐसे हैं जो समय हत्या के लिए कोई भी मूवी देख लें.सो विकल्पों की बात तो बेइमानी है.बहरहाल,देखा जाए तो,१५० रूपए में टिकट ,3० रूपए में दो समोसा,५० रूपए में सूखा सैंडविच और करीब उतने में ही एक कोल्डड्रिंक खरीदना दूबे जी के लिए ही नहीं,बहुतों के लिए एक हर्कुलियन टास्क है
सोचने की बात तो है.तेजी से बढ़ते इन मल्टीप्लेक्सों ने ही सिंगल स्क्रीन थीयेटर्स को अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्षरत बना दिया है.एक तो बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों ने इस व्यवसाय के तरफ रुख किया है,रही सही कसर,सरकार की नीतियों ने पूरी कर दी है.मल्टीप्लैक्स वालों को किसी छोटे शहर के सिंगल स्क्रीन थियेटर वालों से भी कम मनोरंजन कर देना होता है क्योंकि इन मॉल्स को सरकार ने पनपते उद्योगों की श्रेणी में रखा है.लेकिन सिंगल स्क्रीन सिनेमा को भारी मनोरंजन कर के अलावा एज्यूकेशन टैक्स,रोड टैक्स आदि कई तरह के टैक्स देने पड़ते हैं। यही नहीं, साप्ताहिक कलेक्शन का 1 प्रतिशत सरकारी संस्था ‘फिल्म्स डिवीजन’ को और प्रॉपर्टी टैक्स महानगर पालिका को देना पड़ता है।ऐसे में यह घाटे सहकर बंद न हो तो और क्या हो?
लेकिन इन सिंगल स्क्रीन्स के बंद होने की वजह सिर्फ यही नहीं है.आज हम सभी अपने पैसे की पूरी वसूली चाहते है.सुविधाओं के इसी भूख को पूरा किया है-मल्टीप्लेक्सेस ने.सिंगल स्क्रीन थियेटर का गन्दा पड़ चुका शौचालय,मल्टीप्लेक्स के एयर फ्रेशनर युक्त वाशरूम में तब्दील हो चुका है.अधिकतर सिंगल स्क्रीन थियेटर पीकदान बन चुके है.सीटें और मशीनें खस्ताहाल हैं.गर्मियों में झुलसते यह खाली पड़े हाल अब युवा और प्रौढ़ दोनों प्रकार के प्रेमी युगलों के लिए ख्वाबगाह बन चुके हैं जो उन्हें मनोवांछित अँधेरा प्रदान करता है.रही सही कसर इन हाल्स में भीड़ का एक हिस्सा फिल्म के दौरान अश्लील और भद्दे कमेंट्स से पूरा कर देता है,जो सभ्रांत तबके को इन हाल्स में आने से रोकता है.
मनोरंजन को नयी परिभाषा देतीं इन मल्टीप्लेक्सों ने आज हमें सबकुछ दे दिया है पर टिकट खिड़की की वो गहमा-गहमी,टिकट ब्लैकियों से वो मोलतोल,हजारों के बीच बालकोनी में बैठने का वो शाही अंदाज़ और सामने की कतार से आने वाले वो तीखे कमेंट्स जो बरबस ही होटों पर मुस्कान ला देते थे,छीन लिया है.हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने भी इन बंद हो चले या घाटा झेल रहे सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों को बचाने के लिए उन्हें शॉपिंग मॉल में बदलने की मंजूरी देने का फैसला किया है पर सिर्फ इतना प्रयास काफी नहीं है.अगर हम सभी ने मिलकर मनोरंजन के इस गौरवशाली अतीत को नहीं सहेजा तो शायद एक दिन सिंगल स्क्रीन का वह दशकों पुराना सुनहरा दौर किताबी इतिहास का हिस्सा बन कर रह जाए.
1 Response
  1. Very good.ur writing is amazing with good punches..lekin concluuisonwa ka hai..sst me toiletwa seatwa aur ac sahi ho jaye to waha pe baithe ke prahladwa ka bhuja khate hue movie dekhne ka maza kuch aur he hai..